तन नहीं मन की सुंदरता जरुरी है : देवेंद्रसागरसूरि

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श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन जैन मूर्तिपूजक संघ में आयोजित धर्मसभा में आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने कहा कि सुंदरता, खूबसूरती या फिर सौंदर्य। किसको नहीं आकर्षित करती। सुंदरता का मतलब सिर्फ रूपवान होना ही नहीं है। किसी के आकर्षक चेहरे को देखकर ही सौंदर्यबोध करना चूक है।

असली सुंदरता गुणवान होने में है। सौंदर्यबोध सदियों से हमारे विचार विमर्श का केंद्र रहा है। साहित्य में तो खास तौर से। प्रकृति से लेकर सोच, विचार आदि तक में सुंदरता की खोज होती है। चाहे कवि हों या फिर दार्शनिक। हर किसी ने सुंदरता के प्रतिमानों की चर्चा की है।वे आगे बोले कि देखने में आता है कि लोग अक्सर किसी की बाहरी सुंदरता को ही देखते हैं। आंतरिक सुंदरता की उपेक्षा कर देते हैं।

जबकि तन से कहीं ज्यादा मन की सुंदरता जरूरी होती है। क्योंकि हमारा चित्त और मन जैसा सोचता है वही चीज हमारे व्यवहार में भी उतरती है। हमारी सोच अच्छी रहती है तो व्यवहार भी अच्छा रहता है। इस नाते हमें किसी व्यक्ति की तन की नहीं बल्कि मन की सुंदरता देखनी चाहिए।

उसी के आधार पर उसका मूल्यांकन करना चाहिए। सौंदर्य मतलब सुंदरता और बोध मतलब ज्ञान। यानी सुंदरता की समझ या ज्ञान ही सौंदर्य बोध है। हर किसी में सौंदर्यबोध की भावना होनी चाहिए। सौंदर्यबोध से ही हम किसी की बाह्यं या आंतरिक सुंदरता को मापते हैं। बाहरी सुंदरता उम्र के साथ ढल जाती है मगर आंतरिक सुंदरता स्थायी रहती है। अगर व्यक्ति दुनिया में नहीं रहता तब भी वह अपने आचार-विचार व व्यवहार आदि गुणों यानी आंतरिक सुंदरता के बल पर लोगों के दिल में जिंदा रहता है।

इससे साफ पता चलता है कि व्यक्ति के जीवन में आंतरिक सुंदरता का कितना महत्वपूर्ण योगदान है।
बाह्यं सुंदरता तो प्रकृति प्रदत्त होती है मगर आंतरिक सुंदरता हमारे संस्कारों से आती है। घर-परिवार से लेकर स्कूल-कालेज में जो संस्कार मिलते हैं उससे ही हमारे गुणों का विकास होता है। इन्हीं गुणों से हमारे व्यक्तित्व में चार चांद लगते हैं। कहने का मतलब आंतरिक सुंदरता बढ़ाना अपने हाथ में होता है। हर किसी को अपनी आंतरिक सुंदरता बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। अंत में आचार्य श्री ने कहा की बच्चों को बताएं कि वह किसी व्यक्ति के आचार विचार और व्यवहार के आधार पर ही पसंद करें।

कोई व्यक्ति अगर चेहरे से सुंदर है यानी रूपवान है तो जरूरी नहीं कि वह गुणवान भी होगा। इस नाते हर अभिभावक को असली सौंदर्य के बारे में बताना चाहिए। ताकि वह समझ सकें कि सौंदर्यबोध क्या चीज है।

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