जीवन हमेशा एक-सा नहीं रहता। परिवर्तन को स्वीकार कर ही हम अपनी हताशा-निराशा से उबर सकते हैं और समय के साथ चलकर अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं, उपरोक्त बातें आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन जैन मूर्तिपूजक संघ में प्रवचन देते हुए कही , वे आगे बोले कि परिवर्तन को स्वीकारना ही हमें गतिशील बना सकता है।
हम समय की ऐसी रेलगाड़ी के साथ-साथ चल रहे हैं, जिसमें रुकने का मतलब पिछड़ जाना होता है। जीवन के सफर का वास्तविक आनंद हम तभी उठा सकते हैं, जब हम समय के साथ चलें, उन्होंने यह भी कहा कि बदलाव की शुरुआत हमें खुद से करनी चाहिए, अगर हम खुद में बदलाव ला सकते है तभी हम इस दुनिया को बदल सकते है। एक कहावत के अनुसार “हर बदलाव की शुरुआत कर, तू खुद को बदलकर, जमाने को बदलना चाहता है, तो खुद से पहल कर।
कोई इंसान परफेक्ट नहीं होता है, उसके अंदर कुछ खामियां अवश्य होती है। उसे अपनी कमियों को पहचानना, उसे स्वीकार करना और उन कमियों को दूर करना बहुत ही कठिन कार्य है। कमियां हमारे ही अंदर निहित होती हैं, पर ये कमियां हमें नजर नहीं आती और हम इसका दोष दूसरों पर देते हैं। दूसरों को कहने से अच्छा है हम अपनी कमियों को सही से पहचाने और उसमें बदलाव लाने की कोशिश करें।जीवन की परिस्थितियां एक सी नहीं होती है, वो समय के अनुसार बदलती रहती है। परिस्थितियों में यह बदलाव स्वाभाविक है।
कभी-कभी ये परिस्थितियां हमें बदलने के लिए मजबूर करती हैं और कभी हम परिस्थिति के अनुसार स्वयं को बदलते हैं। इसके लिए हम जीवन में कड़ी मेहनत करते हैं और हमें अंतर्मन से खुद को बदलना पड़ता हैं। यहां बदलाव का तात्पर्य खुद में बदलाव लाने से है। हमें खुद में बदलाव लाने के लिए अपनी कमियों को पहचानना होगा और हमें खुद पर पूरा भरोसा करना होगा।
जब हम अपनी कमियों को पहचान कर अपने पर भरोसा करके काम करते है, तो हम अपने अंदर के भय और चिंता से मुक्त हो जाते हैं। हमारे अंदर का भरोसा और विश्वास ही हमारे मस्तिष्क में बदलाव लाता हैं और हमारी वास्तविकता खुद-ब-खुद बदल जाती हैं।