दोष दिखाने वाले को अपना शुभचिंतक मानकर उसका आभार मानें : देवेंद्रसागरसूरि

Whatsapp Image 2023 08 12 At 12.42.23

दोष, दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियों, दुर्भावनाओं को त्यागिए संसार में कोई किसी को उतना परेशान नहीं करता, जितना कि मनुष्य के अपने दुर्गुण और दुर्भावनाएं। उपरोक्त बातें आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन जैन संघ में प्रवचन देते हुए कही। उन्होंने आगे कहा कि दुर्गुण रूपी शत्रु हर समय मनुष्य के पीछे लगे रहते हैं, वे किसी समय उसे चैन नहीं लेने देते। कहावत है कि अपनी अकल और दूसरों की संपत्ति, चतुर को चौगुनी और मूरख को सौगुनी दिखाई पड़ती रहती है। संसार में व्याप्त इस भ्रम को महामाया का मोहक जाल ही कहना चाहिए कि हर व्यक्ति अपने को पूर्ण निर्दोष और पूर्ण बुद्धिमान मानता है। न तो उसे अपनी त्रुटियां सूझ पड़ती हैं और न अपनी समझ में दोष दिखलाई पड़ता है। इस एक ही दुर्बलता ने मानव जाति की प्रगति में इतनी बाधा पहुंचाई है, जितनी संसार की समस्त अड़चनों ने मिलकर भी न पहुंचाई होगी। सृष्टि के सब प्राणियों से अधिक बुद्धिमान माना जाने वाला मनुष्य जब यह सोचता है कि दोष तो दूसरों में ही हैं, उन्हीं की निंदा करनी है, उन्हें ही सुधारना चाहिए। हम स्वयं तो पूर्ण निर्दोष हैं, हमें सुधरने की कोई जरूरत नहीं। तब यह कहना पड़ता है कि उसकी तथाकथित बुद्धिमत्ता अवास्तविक है। इस दृष्टिकोण के कारण अपनी गलतियों का सुधार कर सकना तो दूर कोई उस ओर इशारा भी करता है, तो हमें अपना अपमान दिखाई पड़ता है। दोष दिखाने वाले को अपना शुभचिंतक मानकर उसका आभार मानने की अपेक्षा मनुष्य जब उलटे उस पर क्रुद्ध होता है, शत्रुता मानता है और अपना अपमान अनुभव करता है, तो यह कहना चाहिए कि उसने सच्ची प्रगति की ओर चलने के लिए अभी एक पैर उठाना भी नहीं सीखा। बाहरी उन्नति की जितनी चिंता की जाती है, उतनी ही भीतरी उन्नति के बारे में भी की जाए, तो मनुष्य दोहरा लाभ उठा सकता है, किंतु यदि आंतरिक उन्नति को गया – बीता रखा और बाहरी उन्नति के लिए ही निरंतर दौड़-धूप होती रहती तो कुछ साधन-सामग्री भले ही इकट्ठा कर ली जाए, पर उसमें भी उसे शांति न मिलेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *