श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ में आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने धर्म प्रवचन देते हुए कहा कि पक्षियों की तरह मनुष्य आकाश में उड़ नहीं सकता, मछलियों की तरह जल में तैर नहीं सकता, हाथी के बराबर बोझ नहीं उठा सकता और शेर की तरह शक्तिशाली नहीं हो सकता। बावजूद इसके इस धरा पर वह सबसे सर्वश्रेष्ठ है। इसकी वजह यही है कि सिर्फ मनुष्य के पास बुद्धि बल है और इसकी बदौलत वह असंभव को भी संभव बना सकता है। मनुष्य की बुद्धि का ही कमाल है कि उसने नई-नई खोज करके मानव सभ्यता को श्रेष्ठतम ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। मनुष्य ने ऐसी-ऐसी चीजें विकसित कर दीं, जो कभी असंभव-सी लगती थीं। वैसे बुद्धि के कारण ही मनुष्य- मनुष्य के बीच भी भेद है।
यानी जो व्यक्ति अपने बुद्धि बल का जितना ज्यादा इस्तेमाल करता है, वह उतना अधिक प्राप्त करता है। मनुष्य अपनी बुद्धि की तीव्रता और सूक्ष्मता को अपने पुरुषार्थ से बढ़ा सकता है। मनुष्य की बुद्धि को न कोई चुरा सकता है और न ही कोई उसे छीन सकता है। बाकायदा बुद्धि ही मनुष्य के पास ऐसा धन है, जिसे बांटने पर यह बढ़ती जाती है। जो व्यक्ति अपने अर्जित किए गए ज्ञान को दूसरों के साथ नहीं बांटता है, उसकी बुद्धि सीमित होती जाती है।
इसी प्रकार जो व्यक्ति अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करता, वह हमेशा कष्टों में रहता है। बुद्धि के कारण मनुष्य कठिन विषयों को सरलता से समझ पाता है। बुद्धि बल से मनुष्य में सत्य-असत्य को जानने की क्षमता रहती है और उसके मन में किसी प्रकार का संदेह नहीं रहता। बुद्धि द्वारा व्यक्ति अपना, अपने समाज और राष्ट्र का कल्याण कर सकता है।आचार्य श्री ने आगे कहा कि जिसके पास बुद्धि है, उसके पास हर प्रकार का बल है। बुद्धि बल से मनुष्य कठिन परिस्थितियों में भी हौसला बनाए रखता है। बुद्धि से मनुष्य में विवेक आ जाता है, जिससे वह सही-गलत का निर्णय कर सकता है। जबकि बुद्धि भ्रष्ट हो जाने पर व्यक्ति अपना भला-बुरा नहीं सोच पाता। कहा गया है कि विषयों का चिंतन करने वाले मनुष्यों की उन्हीं विषयों में आसक्ति हो जाती है। आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने पर क्रोध उत्पन्न होता है।
क्रोध से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। ज्ञान-शक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि के विनाश होने पर सब कुछ नष्ट हो जाता है। मनुष्य की बुद्धि जितनी सात्विक होगी, उसका जीवन उतना ही पवित्र होगा। सात्विक बुद्धि से मनुष्य विनय प्राप्त करता है और विनय से उसमें पात्रता आती है, जिससे वह धन प्राप्त करता है। धन से धर्म और धर्म से उसे सुख प्राप्त होता है।