चेन्नई । श्री सुमतिवल्लभ जैन श्वेतांबर जैन संघ के आंगन में चातुर्मासार्थ बिराजमान आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने निंदक नियर राखिए विषय के ऊपर संघ भवन में धर्म सभा को संबोधित किया। आचार्य श्री ने कहा कि निंदा एक रहस्यमय कार्य-व्यापार है, जिसे हम समाज से छिपाकर करते हैं; दिल खोलकर करते हैं ।
निंदक बनने के लिए किसी डिग्री या डिप्लोमा की ज़रूरत नहीं होती। यह तो अभ्यास के द्वारा अपने- आप बढ़ने वाली शक्ति है। इसके लिए सर्वाधिक आवश्यकता है, उस शक्ति की, जिससे गुणों का हाथी दिखाई न दे और जो दोषों की राई को पहाड़ बना सके। निंदा रस समाज में सबसे व्यापक रस है। इसकी विश्व प्रतियोगिता भले ही न हो, निंदा रस के मुकाबले जगह-जगह धड़ल्ले से चालू हैं। निंदा और प्रशंसा के विषयों में तुलना की जाए तो हम पाते हैं कि प्रशंसा के विषय कम हैं, जबकि निंदा के विषय असंख्य जिस चीज़ को आप चाहें निंदा का विषय बना सकते हैं।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि निंदा रस मनोरंजन का सस्ता, विश्वसनीय, सुरक्षित व सर्वोत्तम साधन है। आनंद पाने का इससे अचूक नुस्खा ढूँढ़े नहीं मिलेगा। निंदक के बिना जग सूना है। प्रशंसा करने वाले को भाँड़ कहा जाता है, परंतु निंदा करने वाले को महाकवि। यह रस लोकरंजक भी है, लोकरक्षक भी। यह प्रेम से अधिक विस्तृत, वेदना से अधिक मधुर है। निंदा करने वाला कभी पछताता नहीं है। यह मनुष्य के अहं की ढाल है तो दूसरे के अहं के लिए तलवार। आज वर्तमान समय में महिलाओं ने इस पर एकाधिकार कर लिया। निंदा रस के सबसे सजीव नाम हैं-महर्षि नारद। ये सज्जन कालातीत हैं, रामायण से पहले भी थे और महाभारत के बाद भी मिल जाते हैं। आज नारद अकेले नहीं हैं।
आज तो प्रत्येक मानव उन्हीं के संप्रदाय में है-परम निंदक। निंदा करने वाले को तटस्थ भाव से निंदा करनी चाहिए।उसे अच्छे-बुरे का विवेक उठाकर ताक़ पर धर देना चाहिए। यदि ऐसा नहीं तो अच्छा और आदर्श निंदक बनना किसी के लिए भी संभव नहीं। अच्छा निंदक बनने का काम भी एक तपस्या है। इसके लिए निंदा की पूरी तकनीक’ जान लेना ज़रूरी होगा। सबसे पहले यह जानना चाहिए कि जिसकी निंदा की जा रही है और जिससे निंदा की जा रही है, उनके संबंध कैसे हैं, कहीं वह उसका रिश्तेदार तो नहीं। ऐसे मामले में सावधानी से काम लेना चाहिए। अन्य मामलों में स्वतंत्रता से सब कुछ कहा जा सकता है।