हर्षित होना या दुखी होना सारा दारोमदार मन पर है : देवेंद्रसागरसूरिजी

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चेन्नई. श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी धर्मोपदेश देते हुए कहा कि मनुष्य का सबसे प्रभावशाली अंग मन है। मनुष्य की जीवन-लीला मन से ही चलती है। सारे संकल्प-विकल्प, इच्छाएं-कामनाएं मन की ही उपज हैं। बुद्धि इनकी पूर्ति के लिए क्रियाशील रहती है। भौतिक शरीर में मन कोई अंग नहीं है। यह सूक्ष्म शरीर का अंग है।

भौतिक शरीर का अंग तो बुद्धि भी नहीं है, पर बुद्धि को क्रिया करने के लिए तंत्र की आवश्यकता पड़ती है और यह तंत्र है हमारा मस्तिष्क।मन को किसी प्रकार के तंत्र की आवश्यकता नहीं होती, वह सदैव तंत्र के बगैर ही क्रियाशील रहता है। जब भौतिक शरीर होता है तब भी और जब सूक्ष्म शरीर होता है तब भी।

निद्रावस्था में सपनों के लिए उत्तरदायी मन ही होता है। इसलिए जब मन उद्विग्न होता है, तब हमें बुरे अवसाद वाले स्वप्न दिखाई देते हैं। वहीं जब मन प्रफुल्लित होता है तब हर्ष दायक स्वप्न दिखाई देते हैं इसलिए हर्ष-दुख का सारा दारोमदार मन पर है।चूंकि शरीर के सारे अंग मन के अनुसार संचालित होते हैं इसलिए मन का प्रबल होना आवश्यक है। कहावत है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। मन स्वस्थ है तो शरीर स्वस्थ है।

मन कैसे स्वस्थ रहे, कैसे प्रबल हो इसके लिए हमें कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। यह दृश्य-जगत मन को आकर्षित करता रहता है। इस आकर्षण के फलस्वरूप मन में इच्छाओं कामनाओं का सृजन होता है। यदि हम अवांछनीय दृश्य देखते हैं, तो मन में दूषित कामनाएं जन्म लेंगी। गलत दृश्यों के प्रति आकर्षण न रहे, इसके लिए हमें अच्छे दृश्यों की ओर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना चाहिए। अच्छे व्यक्तियों का संग, अच्छे स्थलों का भ्रमण, सत-साहित्य का पठन और अध्यात्म इसमें सहायक हो सकते हैं। मन स्वस्थ होने के साथ-साथ इसे सशक्त भी होना चाहिए।

प्रबल मन के लिए मन का दृढ़ होना आवश्यक है। मन को दृढ़ करने का सबसे उत्तम साधन है ध्यान। यदि हम थोड़े समय के लिये भी ध्यान करेंगे, तो मन स्थिर होता चला जाएगा। यह स्थिरता ही प्रबलता है। याद रखें, ध्यान पहले दिन से ही नहीं लगता।

यह धीरे-धीरे लगता है। शुरू में एकांत में बैठकर आंखें बंदकर थोड़े समय तक किसी एक अच्छे विचार का चिंतन करें। धीरे-धीरे चिंतन विलुप्त होता जाएगा और मस्तिष्क विचार-शून्य होता चला जाएगा। एकाग्रता बन जाएगी यानी ध्यान लगना शुरू हो जाएगा । जैसे-जैसे ध्यान लगता जाएगा, मन दृढ़ होता चला जाएगा। शरीर में नई ऊर्जा का संचार शुरू हो जाएगा।

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