नैतिकता के बिना एक व्यक्ति इस दुनिया में किसी पशु के समान है : देवेंद्रसागरसूरि

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चेन्नई. श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में चातुर्मासार्थ बिराजमान आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने प्रवचन के माध्यम से कहा कि नैतिक मूल्य मानव को परिपूर्णता प्रदान कर उसे प्राकृतिक रचनाओं में श्रेष्ठ बनाते हैं, परंतु आधुनिकता के नाम पर इन मूल्यों का निरंतर अवमूल्यन होता जा रहा है।

बढ़ता भौतिकतावाद उन्हें लील रहा है। परिणामस्वरूप नैतिकता घुट-घुटकर ही सांस ले पा रही है। यह स्थिति तब है जब नैतिकता को मानव समाज के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता मिली है। नैतिकता के अभाव में मनुष्यता का आकलन संभव ही नहीं। नैतिकता व्यक्ति के विकास में एक सीढ़ी के समान है, जिसके सहारे हम अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं

नैतिक मूल्यों के अभाव में मनुष्य मानव जीवन को निरर्थक बना देता है। आचार्य श्री ने आगे कहा कि नैतिकता के बिना एक व्यक्ति इस दुनिया में किसी पशु के समान है।हम जीवन में महत्वपूर्ण निर्णय नैतिक कसौटी पर कसने के बाद ही करते हैं, लेकिन देखने में आता है कि कई बार मनुष्य उसे अनदेखा कर फैसला करता है, जो नैतिक पतन का कारण बनता है।

स्मरण रहे कि हम सिर्फ सुख भोगने के लिए ही इस संसार में नहीं आये है । इसीलिए केवल भौतिक सुखों के लिए नैतिकता का परित्याग करना उचित नहीं। इसका एक कारण यही है कि अब हमने अपने अंत:करण की आवाज को अनसुना करना आरंभ कर दिया है। हमें यह पता होता है कि अमुक कार्य नैतिक रूप से सही नहीं, लेकिन सुख के लिए वह कार्य करने से संकोच नहीं करते।

इसमें अक्सर दूसरे के हितों की बलि चढ़ जाती है। स्वाभाविक है कि इससे टकराव बढ़ेगा। यही टकराव कई बार प्राणघातक तक हो जाता है। व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यही नैतिकता का पतन अशांति एवं दुखों का कारण बनता है। यदि हमें जीवन बेहतर बनाना है तो सभी स्तरों पर नैतिकता का पालन करना होगा।

ये मूल्य इतने सशक्त होते हैं कि यदि उनका शुद्ध अंत:करण से अनुपालन किया जाए तो वे शांति और समृद्धि माध्यम बनते हैं।

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