मन के ऊपर विवेक का नियंत्रण आवश्यक है : देवेंद्रसागरसूरि…

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मन वास्तव में हमारे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष अनुभवों का संग्रह मात्र है। हमारा व्यक्तित्व वास्तव में हमारे इन्हीं अनुभवों और सोच का परिणाम है उपरोक्त बातें आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन जैन संघ में प्रवचन देते हुए कही। वे आगे बोले कि हम अपने जीवन में जो कुछ भी अच्छा या बुरा सीखते हैं, वे सब हमारे मन में संचित हो जाते हैं।

जीवन में सीखे हुए जो अनुभव कभी काम में नहीं आते, वे मन में बहुत गहरे दफ्न हो जाते हैं। उनमें से कुछ अनुभव ज्यादा गहरे में दफ्न होकर हमारे अचेतन मन का हिस्सा बन जाते हैं, तो कुछ अनुभव कम गहरे में दफ्न होकर हमारे अवचेतन मन का हिस्सा बन जाते हैं। जब यही अनुभव हमारे चेतन मन में आते हैं, अथवा सप्रयास चेतन मन में लाए जाते हैं, तो हमारे मन की बात बन जाते हैं।


अब यह जरूरी तो नहीं कि हमारे सभी अनुभव अच्छे अथवा उपयोगी ही हों। कुछ अनुभव अच्छे हो सकते हैं, तो कुछ बुरे भी, लेकिन ये सभी अनुभव हमारे मन की संपत्ति बन जाते हैं। जब हम कहते हैं कि मन की बात सुनना है तो संभव है कि हम गलत अनुभवों का चुनाव कर बैठें, जिसके परिणामस्वरूप गलत कार्य करने को विवश हो जाएं। ऐसा हमेशा तो नहीं होता, लेकिन कभी-कभी ऐसा हो भी जाता है।

हम कैसे निर्णय करें कि हमारे मन की बात सही है या नहीं? और जिस व्यक्ति के मन में केवल अनुपयोगी अथवा नकारात्मक विचार भरे हों, वे कैसे किसी उपयोगी अथवा सकारात्मक विचार का चुनाव कर सकता है।

यही कारण है कि कोई व्यक्ति मन की आवाज पर लोक-कल्याण के कार्य करने के लिए आगे आकर अपना सारा जीवन लोगों के जीवन को स्वर्ग बनाने में लगा देता है, तो कोई शासक मन की आवाज पर ही छद्म लोक-कल्याण के नाम पर तानाशाह बन बैठता है और लोगों का जीवन नर्क बना डालता है। हमें अधिक ज्ञान अथवा काल्पनिक भावुकता की नहीं, बल्कि बुद्धि का सदुपयोग करने की आवश्यकता होती है, जो विवेक द्वारा ही संभव है। हमारे मन में जहां अधिकांश कूड़ा-कचरा भरा होता है, उसमें से उपयोगी विचार कैसे निकालें- यह बड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न है। यहां हमें विवेकशील होने की जरूरत है। इसके लिए जरूरी है कि हम अपना दृष्टिकोण सकारात्मक बनाएं।

यदि हमारी सोच पूरी तरह सकारात्मक हो जाए, तो सारी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। लेकिन अक्सर ऐसा संभव नहीं होता। इसीलिए विवेक अनिवार्य है। विवेक के द्वारा ही उपयोगी व अनुपयोगी विचारों अथवा कार्यों में भेद किया जा सकता है।

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